जैसा कि वर्तमान भारत में दो प्रमुख विचारधाराएं काम कर रही हैं, एक वो जो साम्यवाद से प्रेरित हैं और दूसरी जो पूंजीवाद से प्रेरित हैं। सभी भारतीय राजनितिक पार्टियों को इन्ही दो विचारधारों के आधार पर दो हिस्सों में बांटा जा सकता है। अपनी अपनी समझ के हिसाब से सबने हिन्दू धर्म की अपनी परिभाषा बना रक्खी है। और अगर इस बात पर गहनता से विचार किया जाये तो बृहद सनातन धर्म इन सबकी परिभाषाओं को समाहित कर लेगा।
आपको एक गांव की कहानी सुनाता हूँ।
एक समय की बात है, एक गांव में छह अंधे व्यक्ति रहते थे। वह बड़ी खुशी के साथ आपस मे रहते थे। एक बार उनके गांव में एक हाथी आया। जब उनको इस बात की जानकारी मिली तो वो भी उस हाथी को देखने गए। लेकिन अंधे होने के कारण उन्होंने सोचा हम भले ही उस हाथी को न देख पाएं, लेकिन छूकर ज़रूर महसूस करेंगे कि हाथी कैसा होता है। वहां पहुंच कर उन सभी ने हाथी को छूना शुरू किया। हाथी को छूकर एक अंधा व्यक्ति बोला, हाथी एक खंभे के जैसा है मैं अब अच्छे से समझ गया हूं, क्योंकि उसने हाथी के पैरों को महसूस किया था।
तभी दूसरा व्यक्ति हाथी की पुंछ पकड़ कर बोला, अरे नहीं, हाथी तो रस्सी की तरह होता है। तभी तीसरा व्यक्ति भी बोल पड़ा अरे अरे, ये तो पेड़ के तने की तरह होता है। कान को छूते हुए चौथा शख्स बोला, हाथी तो एक बड़े सूपे की तरह होता है। पांचवें व्यक्ति ने हाथी के पेट पर हाथ रखते हुए सभी को बताया, नहीं… ये तो एक दीवार की तरह होता है। छठा व्यक्ति बोला ये कठोर नली की तरह होता है।
अलग अलग राय होने के कारण सभी की बहस होने लगी। सभी खुद को सही साबित करने में जुटे थे। उनकी बहस तेज होती गयी और ऐसा लगने लगा मानो वो आपस में लड़ ही पड़ेंगे। तभी वहां से एक बुद्धिमान व्यक्ति गुज़र रहा था। उनकी बहस को देखकर वो वहां रुका और उनसे पूछा, क्या बात है, तुम सब आपस में झगड़ा क्यों कर रहे हो? उन्होंने बहस का कारण बताते हुए, उस बुद्धिमान व्यक्ति को बताया कि हम यह नहीं तय कर पा रहे हैं कि आखिर हाथी दिखता कैसा है?
बुद्धिमान व्यक्ति ने पहले सभी की बात शांति से सुनी और बोला, तुम सब अपनी अपनी जगह सही हो। तुम्हारा अनुभव अलग अलग इसलिए है क्योंकि तुम सबने हाथी के अलग अलग हिस्सों को छूकर महसूस किया। उसके बाद उस बुद्धिमान व्यक्ति ने उन्हें समझाया यदि आप सब अपने जो जो महसूस किया, उसके अलावा भी आगे कुछ देखते तो आप को हाथी असल में कैसा होता है, ये समझ आ जाता। दरअसल दूसरे व्यक्ति की बात काटने के लिए केवल अपने अनुभव या दृष्टिकोण को ही सही मानने अथवा मनवाने के लिए तर्क देने से सत्य नहीं बदलता।
हिन्दू और हिन्दुत्व पर राहुल गाँधी (कांग्रेस और साम्यवाद) की राय
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हाल ही में हिंदू धर्म और हिंदुत्व को दो अलग चीजें बताया है। राहुल गांधी के शब्दों में “अगर दोनों एक ही चीजें हैं तो उनका नाम एक ही क्यों नहीं है? अगर दोनों एक ही हैं तो हिंदू धर्म क्यों कहा जाता है, सिर्फ हिंदुत्व क्यों नहीं ? निश्चित रूप से दोनों भिन्न चीजें हैं। क्या सिख या मुस्लिम को पीटना हिंदू धर्म है ? बेशक हिंदुत्व में है। लेकिन, क्या हिंदू धर्म अखलाक की हत्या को लेकर है? किस पुस्तक में यह लिखा है ? मैंने नहीं देखा है। मैंने उपनिषद पढ़ा है, मैनें नहीं देखा है। एक बेगुनाह को मारना कहां लिखा है, मैं नहीं खोज पाया हूं। मैं हिंदुत्व में इसे देख सकता हूं।”
राहुल गांधी ने यह एकदम साफ कर दिया है कि व्यक्तिगत स्तर पर हिंदू धर्म अपनाने के बावजूद वे सौम्य या कट्टर, किसी भी प्रकार के हिंदुत्व का समर्थन नहीं करते। कांग्रेस यह समझती है कि‘ हिंदू’ एक धर्म है, जबकि हिंदुत्व एक राजनीतिक सिद्धांत है, जो हिंदू आस्था के बुनियादी सिद्धांतों से अलग जाता है। जहां हिंदू धर्म में सारी पूजा पद्धतियों का समावेश है, हिंदुत्व इसके प्रति उदासीन है और उसे केवल पहचान की चिंता है। हिंदू धर्म सुधार और तरक्की के लिए खुला है, इसीलिए यह 4000 वर्षों से फल-फूल रहा है। हिंदुत्व प्रतिक्रिया वादी और प्रतिगामी है, जिसकी जड़ें ‘नस्लीय गर्व’ में है, जिसका परिणाम 1920 के दशक में फांसीवाद में हुआ।
आरएसएस (भाजपा और पूँजीवाद) की नजर में क्या है हिंदुत्व ?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत जी के अनुसार “हिंदू नाम तो बहुत बाद में आया है। वो नाम आने के पहले इसी को (हिंदूत्व) मानवधर्म कहते थे। यही मानवता है, यही मनुष्यता है। यही बंधुभाव है। व्यक्ति, समाज और सृष्टि सबका जीवन सुखदपूर्वक चले। ऐसा संतुलित विकास सबका साधने वाला। मनुष्य के शरीर, मन, बुद्धि की आवश्यकता, संतुलित रूप पूरा होकर, वो मोक्ष की ओर बढ़े, ऐसी प्रेरणा देने वाला, इन सबका आपस का संतुलन, इसी का नाम हिंदुत्व है और यह सत्य है और दुनिया में अपनी पहचान है।”
1920 के दशक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारक सावरकर ने ‘एसैंशियल्स ऑफ हिन्दुत्व’ में कहा कि एक सिद्धांत के रूप में हिंदुत्व भारत के राष्ट्रीय चरित्र का आधार है। उन्होंने हिन्दू पुनरुत्थान के विचार को राजनीतिक अर्थों में परिभाषित किया न कि धार्मिक अर्थों में। उन्होंने कहा राष्ट्र उसके लोगों को एकजुट करने के हिंदुनैस पर आधारित है। उनकी राय में राष्ट्र को एकजुट करने का उपाय हिंदू सभ्यता और हिंदू जीवनशैली है। उनके अनुसार, सामान्यत: हिंदुत्व एक मानसिक स्थिति है और इसकी तुलना धार्मिक हिंदू कट्टरवाद से नहीं की जानी चाहिए। इसके अलावा हिंदुत्व एक स्थिर अवधारणा नहीं है। इसका अर्थ और संदर्भ समय के साथ बदलता रहा। औपनिवेशिक युग में न्यू हिंदुइज्म शब्द का प्रयोग किया गया। स्वतंत्रता के बाद इसका उपयोग धर्म बनाम संस्कृति और राष्ट्र बनाम राज्य के संदर्भ में किया गया।
हिंदू धर्म और हिंदूत्व की आड़ में घोर सांप्रदायिक राजनीति?
कांग्रेस ने भाजपा पर आरोप लगाया है कि उसने भारत में हिन्दू बहुलवादी सांप्रदायिक शैली की राजनीति की है और इसके लिए चुनावों में मुस्लिमों को हाशिए पर लाने जैसी युक्तियां चलने का प्रयास किया है और ऐसा करने के लिए साम्प्रदायिक हिंसा को संरक्षण दिया और विशेषकर गौ रक्षा और लव जेहाद के भावनात्मक मुद्दों को लेकर उसने ऐसा किया।
भाजपा ने अपनी प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस की यह कहकर आलोचना की कि वह हिंदुत्व के विरुद्ध जाल बुन रही है तथा हिन्दू तालिबान, भगवा आतंकवाद आदि जैसे शब्दों का प्रयोग कर हिंदू धर्म के विरुद्ध कार्य कर रही है। भाजपा का कहना है कि कांग्रेस हमेशा से तुष्टीकरण की राजनीति करती रही है। जनेऊधारी राहुल गांधी विधानसभा चुनावों से पूर्व मंदिरों के चक्कर लगाते हैं। कांग्रेस एक मुस्लिम पार्टी है और टुकड़े-टुकड़े गैंग का हिस्सा है जो आतंकवादियों को संरक्षण देती है तथा पाकिस्तान के एजैंडे पर काम करती है और वहां की पार्टी है।
आज की धर्म पर आधारित प्रतिस्पर्धी लोकतांत्रिक राजनीति में मतदाताओं का धु्रवीकरण करने के आसार बढ़ जाते हैं। दु:खद तथ्य यह है कि हमारे नेताओं को धार्मिक भावनाएं भड़काने पर कोई ग्लानि नहीं होती। वे भूल जाते हैं कि राज्य की कोई धार्मिक पहचान नहीं है। राजनेता इस बात की परवाह नहीं करते हैं कि उनके ऐसे विचार विनाशक हो सकते हैं या धार्मिक भावनाओं को भड़का सकते हैं अथवा लोगों को धार्मिक आधार पर और विभाजित कर सकते हैं। हिंदू धर्म और हिंदूत्व की आड़ में हम घोर सांप्रदायिकता देख रहे हैं, जहां पर हमारे नेताओं ने राष्ट्रवाद और हिन्दू-मुस्लिम वोट बैंक को राजनीति का मुख्य आधार बना दिया है। जहां हर नेता सांप्रदायिक सौहार्द की अपनी परिभाषा दे रहा है और उसका एक ही इरादा है कि वह अपने अबोध वोट बैंक को भावनात्मक रूप से इस तरह से बांधे रखे कि उससे सत्ता प्राप्त करने का लक्ष्य हासिल हो सके।
शास्त्रों के अनुसार ‘हिन्दू’ शब्द का अर्थ
जब बात शास्त्रों की आती है तो हिन्दू धर्म के संरक्षक शंकराचार्य से उत्तम गुरु कौन हो सकता है वर्तमान में। तो आइये जानते हैं उन्ही के शब्दों में ‘हिन्दू’ शब्द का अर्थ।
गोवर्धन मठ पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी के शब्दों में –
” मोहम्मद और जीसस से पहले भी हिंदू शब्द का इस्तेमाल कोमल, सुंदर, मिलनसार, सुशोभित, सही और दुश्मनों के हत्यारे के अर्थ में किया जाता था। सिकंदर जब भारत आया तो उसकी इच्छा हिंदुकुश यानी हिंदकूट पर्वत की यात्रा करने की थी। पारसियों के एक ग्रंथ ‘शातिर’ में हिंदू शब्द का उल्लेख है। अवेस्ता में इतने सारे वैदिक शब्द हैं जो सिकंदर से सैकड़ों वर्ष पुराने हैं जिनमें हिंदू शब्द का प्रयोग किया गया है।”
वो आगे बोलते हैं- “बलख नगर को पहले हिंदवार कहा जाता था, ऋग्वेद के अनुसार ‘सा’ और ‘हा’ समान हैं और यदि हम इसे इस दृष्टि से देखें तो भविष्य पुराण के अनुसार सिंधुस्थान या हिंदुस्तान या हिंदुस्तान के लिए इस शब्द का प्रयोग किया जाता है और इसका अर्थ यह है आर्यों का उत्तम देश। साथ ही कालका पुराण में ‘हिन्दवो’ शब्द का प्रयोग हुआ है, ‘शरगंधर पद्धति’ में हिंदवो शब्द का प्रयोग हुआ है जिसमे वे स्वयं को ‘वेद-मार्गिया’ कहकर पुकारते थे, वेदों के मार्ग पर चलने वाले लोग हिन्दू कहलाते थे। हिंदू आर्यों का नाम है, ‘इंदु’ और ‘सिंधु’ पर्यायवाची माने जाते थे, दोनों संस्कृत शब्द हैं।
अगर हम ‘बृहस्पति आगम’ का पालन करें, तो क्षेत्र की भी पहचान की जाती है। ‘बृहस्पति आगम’ में, बहुत स्पष्ट रूप से, हिंदुस्तान शब्द का प्रयोग किया जाता है। साथ ही महाभारत के अश्वमेधिक पर्व में ‘आर्यवर्त’ को ही हिन्दुस्थान या हिन्दुस्तान कहा गया है। साथ ही, ‘बृहस्पति आगम’ के अनुसार, जो गुणी है, जो हिंसा से दूर रहता है लेकिन अराजक तत्वों को नष्ट करने में सक्षम है, जो वेदों और मवेशियों का रक्षक है, वह व्यक्ति हिंदू है।
साथ ही यह भी समझ लेना चाहिए कि ‘रामकोश’ और ‘परिजाथारण’ नाटक में भी हिंदू शब्द का प्रयोग हुआ है। ‘माधवदिग्विजय’ के अनुसार हिंदुओं की एक विस्तृत परिभाषा उपलब्ध है – जिसने वेदों के बीज मंत्र ‘ॐ’ को अपना मंत्र मान लिया है, जो पुनर्जन्म में विश्वास रखता है, जो गाय की पूजा करता है, जो गंगा की पूजा करता है और भारतीय परंपरा के अनुसार वैदिक ऋषियों को अपना गुरु मानता है और हिंसक जानवरों को मारने में सक्षम है, जो क्षत्रिय धर्म के उद्भाषक हैं, उन्हें हिंदू कहा जाता है।
विचार करें तो ऋग्वेद में भी हिन्दू शब्द का प्रयोग हुआ है, इसमें ‘हि’ और ‘इंदु’ दोनों का प्रयोग गौ-भक्तों के अर्थ में हुआ है।
इस तरह, मैंने कई उदाहरणों के माध्यम से समझाया, कि यह आक्रांताओं द्वारा दिया गया अपमानजनक शब्द नहीं है और वास्तव में, मुसलमानों से पहले सिकंदर भारत आया था, उससे पहले भी पारसी शास्त्रों में हिंदू शब्द का प्रयोग किया जाता है।
वेद व्यास द्वारा लिखे गए शास्त्रों में ‘विविध मेदानी’ जैसे भंडारों में, कालिका पुराण जैसे पुराणों में हिंदू शब्द का प्रयोग किया गया है। और इसके अर्थ को सत्यापित करने का एक शानदार तरीका है। जैसे आज राजनीतिक दलों को भाजपा, सपा, बसपा आदि कहा जाता है, उसी तरह उस समय के अनुसार, ऋग्वेद में भी, एक गौ-पूजक के लिए, हिंदू शब्द का प्रयोग किया जाता है। अथर्ववेद में जैसा है, वैसा ही प्रयोग किया गया है। तो हिंदू शब्द वैदिक है, प्राचीन है, शब्दकोशों में उपलब्ध है और विदेशी उन्हें हिंदू ही कहते रहते हैं। अतः इस स्थिति में सिंधु और इंदु को पर्यायवाची माना जाता है।”
शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी के शब्दों में सुनने के लिए यहाँ देखें
प्रश्न उठता है कि क्या हिन्दुत्व और हिंदू धर्म एक ही हैं?
इन्साइक्लोपीडिया ऑफ हिंदुइज्म में हिन्दुत्व को हिन्दू धर्म की संस्कृति के रूप में परिभाषित किया गया है। हिन्दुत्व एक कारक है और हिंदुओं, सिखों और बौद्धों द्वारा अपनाया गया एक धर्म है। मेरियम वैबस्टरर्स के इन्साइक्लोपीडिया ऑफ वल्र्ड रिलीजन में हिंदुत्व को भारतीय सांस्कृतिक, राष्ट्रीय और धार्मिक पहचान के रूप में परिभाषित किया गया है।
जैसा कि हमारे वेदों और उपनिषदों के अनुसार हिन्दू धर्म विश्व का प्राचीनतम धर्म और जीवन पद्धत्ति है, इसको राजनीती में डालकर अपमानित नहीं किया जा सकता है। राजनीती केवल प्रशासन का एक हिस्सा मात्र है, देश की जनभावनाओं को अपने पाले में डालकर वोटों के लिए धर्म का दोहन या विघटन ऐतिहासिक रूप से भरी भूल होगी।
ये राजनितिक पार्टियां अपने हितों के बारे में ही सोचेंगी, अतः हिन्दू धर्म से जुड़ी संस्थाओं को आगे आना होगा। हिन्दुओं को खुद आगे आकर राजनितिक पार्टिओं को बताना होगा कि धर्म राजनीती के लिए नहीं है।